वैकल्पिक पता

अगर आपका संगणक हिंदी में लिखने में अक्षम है तो आप http://hindi.fi.vc याद रखें. If your computer dosen't have a way to enter Hindi in browser address bar,please remember shortcut http://hindi.fi.vc

शिक्षा प्लान

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

कोलाहल

अभिमन्यु की गाथा है,आधा हीं आता है.

गर्भ से सीखा नहीं,छाती पे झेला है.

युद्ध की तैयारी है, दुश्मन पर भारी है.

चक्रव्यूह वेदन कर पार तो पाऊंगा.

वापस लौटने की नहीं कोई अभिलाषा है.

खून के कतरे पे कई नाम होगा.

अपनों की लाशों भी होगी महाभारत में.

समय के टाइमलाइन पर जिंदगी एक घटना है.

परिवर्तन तो होगा,क्योंकि ये परमाणु बम है.

हम हों ना हों,प्रगति आगे की परिकल्पना है.

 

- अंजन भूषण, अप्रैल ४,२०१२

२९२/सी, अशोक नगर, राँची

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

भरोसा

यदि कभी मन निराशा में रहा भटक हो,
ह्रदय के आशावाद, बन विश्वास, संबल दो.
यदि कभी विषाद से मन व्यथित हो,
ह्रदय के विश्वास, प्रेरणा की किरण दो.
कर्मभार से यदि तन हो रहा बोझिल हो,
ह्रदय की चेतना, तनु को तुम बल दो.
यदि विश्वास हीं हो रहा खंडित हो,
दृदय के ज्योतिपूंज, नव विश्वासों को प्रकाश पल्लवित कर दो.

अंजन भूषण
दिनांक - १९ जनवरी ९०

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

आश्वासन

भयभीत पुत्र के भविष्य की
कल्पना से ‍,
ज्योतिष ध्वनि ‍‍- दस्युसम्राट
या विश्वविजेता
का पदार्पण है, देवी, इस कुटीर
में,असमंजित रहती‍-
संभावनाओं के विपरीत छोर पर
टकती तुम.


नींव के पत्थरों की तरह,हर
रात्रि जोड़ती थी‍ -
कथाओं की श्रंखला से शिक्षा का
अभिदान.
समय की धार में,हर क्षण,मेरी
जिज्ञासाओं का -
किस-किस विधा से,तुम, करती
समाधान.


प्रश्नों से तुम्हारी दुविधा
की पीड़ा से विज्ञ,
अनभिज्ञ बन,प्रश्न कर,करता
तुम्हें परेशान.
मैं अपने संपूर्ण ज्ञान का कर
चुकी दान -
पुत्र अब तुम मेरे प्रश्नों का
करेगा समाधान.


उस दिवस से,भाव विभोर,आह्वलादित
मैं,
गर्वभाव से,कर्तव्य की तरह,
अध्ययन करता ‍-
रहता कहकर लीन हूँ मैं, कठिन
गृहकार्य में,
रात्रि के तीसरे पहर तक,देखने
हेतु,तुम्हारी मुस्कान.


एवम् योग्य शिष्य की
तरह,प्रश्नोत्तर की कड़ी,
की असंख्य श्रृखंला से,बनी
रही,गुरू प्रेरणा तुम.
शनैः शनैः, यदाकदा, जब अन्यान्य
कारणों से,
समस्याओं की चुनौती नहीं दे
पाती थी तुम -


ढूँढता विधा ताकि,खींच सकूँ मैं
तेरा ध्यान.
हठ कर,हर विधा से,व्याकुल,चाहता
फिर से दंड,
और दंड देकर भी,पश्चाताप के
तेरे अश्रु -
देखकर मेरा मन पाता, तुम्हारी
करुणा का आश्वासन.

प्रभात और सौंदर्य

वातायन से शीतल पवन

चल रहा है मंद मंद

छू कर लटों को तेरे

लेता आलिंगन हर क्षण

प्रभात का श्रृंगार और

प्रकृति का निखर आप पर

आसक्ति निसृत हो रही

मेरे मानस पटल पर.